भाषा और व्याकरण

 


भाषा और व्याकरण

 

विचारों की अभिव्यक्ति का एक साधन होने के सांसद नए विचारों को जन्म देने वाली होती है मन में दक्षतम वृद्धि का सर्वोत्तम साधन भाषा ही भाषा ही मनुष्य को भूत और वर्तमान से जोड़ती है हमारी संस्कृति विरासत को भाषा ही संभाल कर रखती है उसे आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करती है भाषा के माध्यम से ही हम अपने पूर्वजों के विचारों को से परिचित होते हैं उनका अनुकरण तथा अनुसरण करते हैं अतः भाषा का समय ज्ञान मनुष्य के लिए परम वर्ष के भाषा मनुष्य को सभी और शिक्षित बनती है व्याकरण किसी भाषा को सिखाने में हमारी सहायता करता है शुद्ध और व्याकरण संबंध भाषण मनुष्य को शोभा बढ़ाती है

 

भाषा का मानक रूप -

 

मौके को लिखित रूपों में प्रचलित होने कारण भाषा में अनेक रूप था यह अंतर आ जाता शब्दों के अर्थ तथा वाक्य विन्यास में भी अंतर आना स्वाभिक है बोलचाल की भाषा कोई दूरी पर बदलते रहती है इस प्रकार उसके रूप में विकृति आने लगती है

 

भाषा भाषा प्रयोग में एकता लाने अथवा उसकी एकरूपता बना रखने के लिए उसके एक मानक रूप की आवश्यकता होती है ऐसी दशा में श्रेष्ठ और सूचित लोगों द्वारा व्यवहार में लाया जाने वाला भाषा रूप ही स्वीकार किया जाता है वही रूप मानक होता है भाषा की मानक था उसकी एकरूपता पर निर्भर करती है भाषा के मानक रूप को बनाने में व्याकरण हमारी सहायता करता है

 

व्याकरण के अंग -

भाषा की सबसे छोटी इकाई वाक्य है किंतु व्याकरण की दृष्टि से सबसे छोटी इकाई वर्ण या अक्षर है क्योंकि वर्णों से शब्द शब्दों से वाक्य और वाक्य से ही भाषा बनती है जिस प्रकार वन शब्द पद और वाक्य भाषा के विभिन्न घटक है जिसकी है अध्ययन व्याकरण के अंतर्गत किया था भाषा की मूल ध्वनियां वर्ण कहलाती है वर्णों के सार्थक समूह से ही शब्द बनता है जब शब्द किसी वाक्य में प्रयुक्त होते हैं तो वह पद कहलाते हैं व्याकरण में इन शब्दों के परिचय को पद परिचय कहते हैं वाक्य में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का स्वतंत्रता नहीं रहता शब्दों का सार्थक समूह ही वाक्य कहलाता है वाक्य में इन संभवत घटकों या अंगों का वर्णन और विश्लेषण किया था जो इस प्रकार है

 

1- वर्ण विचार -

 

इसके अंतर्गत वर्णों के आकार उच्चारण वर्गीकरण तथा उसके सहयोग और संधि के नियमों पर विचार किया जाता है

 

2- शब्द विचार -

 

इसमें शब्दों के भेद व्युत्पत्ति और रचना आदि के नियमों का वर्णन होता है

 

3 - पद विचार -

 

इसमें पद भेद रूपांतरण और शब्द रूपों के प्रयोग संबंधी नियमों का अध्ययन किया जाता है

 

4 -वाक्य विचार -

 

इसमें वाक्य के भेद वाक्य के अंग और उपांग उनके संबंध विश्लेषण विशेषण विराम चिन्ह आदि के विषय में विचार होता है

 

व्याकरण

 

व्याकरण वह विद्या है जिसमे भाषा का प्रयोग करना सीखा जाता है या विद्या में अशुद्ध उच्चारण शुद्ध लिखने शुद्ध बोलने और शुद्ध पढ़ने ज्ञान प्रदान करती है व्याकरण भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन होता है इसमें भाषा से जुड़े हुए नियम आदि होते हैं व्याकरण के नियमों भाषा का सर्वमान्य रूप निर्धारित होता है

 

वर्ण -

 

वर्ण का अर्थ अक्षर वर्ण या अक्षर व मूल धोनी है जिसके खंड या टुकड़े नहीं किया जा सकते जैसे  आ इ उ आदि वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं हिंदी वर्णमाला में 46 वर्ण या अक्षर है

 

स्वर -

आ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ

 

व्यंजन -

 

v क ख ग घ ड़      क वर्ग

v च छ ज झ        च वर्ग

v ट ठ ड त  ढ़ ण। ट वर्ग

v त थ द ध न।      त वर्ग

v प फ ब भ म     प वर्ग

v य र ल व श ष ह

 

अयोगवाह अं  अनुस्वार अः विसर्ग

 

 

अनुस्वार ओर विसर्ग -

 

अनुस्वार का चिन्ह (°) ओर विसर्ग ला चिह्न

(:) है ये दोनों व्यंजन है क्योंकि इनका प्रयोग (उच्चारण) स्वर सहायता के बिना नही किया जा सकता धयन रहे कि चंद्र बिंदु( चंद्रबिंदु) का उच्चारण मुह ओर नासिका दोनों की मदद से होता है।

जैसे - हँसना अनुस्वार का उच्चारण केवल नासिका की मदद से किया जाता है। जैसे हँस।

 

 

स्वर -

 

वर्ण दो प्रकार के होते हैं स्वर व्यंजन स्वर मूल ध्वनि है इन्हें किसी अन्य ध्वनि की सहायता से बिना उच्चरित किया जा सकता है जैसे आ इ उ स्वरों की संख्या 11 है अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ए ओ औ वाले समय के अनुसार सवारों को तीन भागों में बांटा सकता है

 

1- अश्व स्वर

2- दीर्घ स्वर

3- प्लुप्त स्वर

 

जैन स्वर्ग के उच्चारण में आंख के उच्चारण के बराबर समय लगता है उन्हें देर को स्वर्ग आ जाता है आ ई उ और औ  दीर्घ स्वर है

 

प्लुप्त स्वर के उच्चारण में तीन मात्राओ के बराबर समय लगता है सतीश में ती के उच्चारण ओर ओम में ओ के उच्चारण में तीन मात्राओ के बराबर समय लगता है।

 

1- मूल स्वर

2-संयुक्त स्वर

 

आ उ ऋ और सूक्त स्वर अ +आ

आ+इ =   अ+ए= ऐ अ+उ=ओ अदि

 

- व्यंजन –

व्यंजन उन वर्णों को कहते है जिनके उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है क़+च +अ = च

त+अ =त

ये सब व्यंजन के उदाहरन है  यहाँ क ओर च के उच्चारण में अ की सहायता ली गयी है

हिंदी में प्रयुक्त तीन व्यंजन है क्ष त्र ज्ञ इनका निर्माण इस तरह होता है क+ष क्ष

त्र और ज्ञ

 व्यंजन तीन प्रकार के होते है अन्तस्य और ऊष्मा क से म तक 25 वर्ण स्पर्च कहलाते है

उच्चारण स्थान के अधर पर वर्णों का वर्गीकरण इस प्रकार है

 

 

1-     कंथास्य -

 

अ  आ क वर्ग ( क ख ग घ ड) ह और विसर्ग में जिव्हा कंठ छूती है

 तालव्य 

इ ई क च वर्ग  ( च छ ज झ ) य और श केवल तालू से बोले जाते है

 

2-     मुर्दान्य -

 

ऋ ट वर्ग ( ट ठ ड ढ ण) र ष तथा ड और ढ का उच्चारण मूर्धा से होता है

 

3-     दन्त्य -

 

त वर्ग ( त थ द ध न ) ल तथा स का उच्चारण दांतों के जिव्हा के मेल से  होता है

 

4-     ओष्ट्या -

 

उ ऊ ( प फ ब भ म ) का उच्चारण होटो से हॉट है

 

5 - कंठतालू -

ए ऐ  का उच्चारण कंठ और तालू के मेल से होता हो

 

5-     कंठोष्ट -

 ओ और औ का उच्चारण होटो के मेल से होता है

 

6-     दन्तोष्ट -

व् (फ) का उच्चारण दन्त और होतो के मेल से होता है

 

 7-अनुनासिक -

 

ड ण न म का उच्चारण मुह और नाक से होता है

8- नासिका -

 

सभी अनुस्वार नाक से बोले जाते है

 

 

 

शब्द

 

उन धव्नियो को शब्द कहते है जो एक या एक से अधिक वर्णों से मिल्क बनी हो जीना कुछ अर्थ निकलता हो अर्थ की दृष्टी से शब्द २ प्रकार के होते है

1- सार्थक

2- निर्थक

 

शर्थक शब्द वे हे जिनमे किसी अर्थ का बोध होता हो जेसे कुत्ता , गाय जंगल कमीज पुस्तक अदि

 

निर्थक शब्द वे शब्द है जिसमे किसी अर्थ का बोध नही होता है

जेसे पशुओ और कुत्तो की आवाज़

 व्युत्पत्ति के अधर पर शब्दों के तीन भेद है

1- रूडी

2- योगिक

3- योगरुडी

रूडी शब्द उन्हें कहते है जो दुसरे शब्द के मिलने से नही बनते है

जिनकी अपनी स्वतंत्र स्थिति होती है जिनके सार्थक खंड नही हो सकते

 

योगिक शब्दों के उदहारण है

पाठशाला ( पाठ +शाला)

हिमालय  ( हिम +अलाय) अदि

योगरुड

शब्द उन्हें कहते है जो योगिक हो और जिनका विशेष अर्थ भी निकलता हो

नीलकंठ योग्रुदी शब्द है

इसका अर्थ है शिव

उत्पत्ति के आधार पर शब्दों के 4 भेद किये जाते है 

1-     तत्सव

2-     तद्भव

3-     देशज

4- विदेसी

 

तस्तम शब्द

वे शब्द है जो संस्कृत के है और हिंदी में उन्हें ज्यो का त्यों प्रयोग किया जाता है

जेसे मित्र अग्नि  अदि

 

तद्भव

 

संस्कृत के मूल के  हे जेसे – क्षेत्र का खेल उन्हें कुछ बदलकर इस्तेमाल किया जाता है  दुग्ध  का दूध

 चूर्ण का चूरन

अदि

वेदेसी शब्द विदेसी भाषाओ के है जिसे हिंदी में स्वीकार कर लिया गया है

जेसे कोट डॉक्टर प्लात्फ्रोम अदि

 

अर्थ के अधर पर शब्दों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है

1- वाचक

2- लाक्षणिक

3- व्यंजक

 

साधारण लोक प्रसिद्द देने वाले वाचक शब्द कहलाते है जेसे- गो

भारत का पवित्र पशु है  यहाँ गो का जो लोक प्रसिद्द अर्थ है वह हम सभी जानते है

 

 


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