प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत-Prachin Bhartiya Itihas Ke Strotra

 

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत-Prachin Bhartiya Itihas Ke Strotra



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इतिहास शब्द इति ह तथा आस इन तीनो शब्दो से मिलकर बना हुआ शब्द  है जिसका अर्थ ऐसा निश्चित रूप से हुआ है स्पष्ट एक इतिहास पूर्वजों का अध्ययन करता है या इस अध्ययन के अंतर्गत हम उसके विविध प्रकार के कार्यकलापों उनके द्वारा निर्मित विविध राजनीति एवं सामाजिक चीजों को समझेंगे



प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत


पुरातात्विक


प्राचीन भारतीय इतिहास के ऐसे कहीं योग है जिनके विषय में हमें मुख्य रूप से पूर्णताती के उत्खनन से प्राप्त सूचनाओं से जानकारी मिलती है भारत के प्रगति हरदिक्कल के विषय में हमारी संपूर्ण जानकारी पूर्ण तात्विक साक्ष्य के ऊपर या आधारित है भारतीय सभ्यता में सेंधव सभ्यता के विषय में हम कुछ भी नहीं जा पाते यदि उसके विषय में पुरातात्विक साक्षरता नहीं मिलती सहायता नहीं मिलती ऐतिहासिक कानून का स्थान के उत्खनन से ऐसी महत्वपूर्ण सूचनाओं मिली जिसे देखकर हमें पुराने इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है हमें पुरातात्विक बहुत प्रकार के साक्षी मिले हैं बर्तन मूर्तियां भवन अभिलेख हथियार औजार उनका जीवन कैसा था इन साक्ष्यप को देखकर अनुमान लगा सकता है वह कैसे रहते थे क्या करते थे क्या कहते थे क्या सुविधा थी



अभिलेख साक्षी गुफा शिलालेख स्तंभ लेख तमपत्र


सिक्के


प्राचीन भारतीय इतिहास के लेखन में सिखों से बहुत सहायता मिलती है भारतीय प्राचीन इतिहास में मुद्राएं सिक्के इस जानकारी मिलती है सचिन ने बने होते हैं सिखों के आधार पर इतिहास का निष्कर्ष निकालते थे



स्मारक तथा खंडहर

स्मार्ट का खंडहरपूर्त्तारिक साक्षी के जानने के लिए महत्वपूर्ण है वास्तु कला और शिल्प का शास्त्र का ज्ञान तो होता है साथ ही सामान्य जनजीवन और लोगों के धार्मिक विश्वास इत्यादि के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनाओं मिलती है मोहनजोदड़ो हड़प्पा के स्थान से प्राप्त खंडहर नगर निर्माण कला गृह निर्माण कला तथा संबंधी अन्य पक्ष महत्वपूर्ण प्रकार डालते हैं बारूद और सांची से प्राप्त होता कि व्यक्ति का और त्वरण धारों पर जो अंकन चित्र क्यों उनसे तत्कालीन जनजीवन व्यापार आदि की जानकारी हमें प्राप्त होती है अजंता की गुफाओं में बने चित्र दर्शन बड़े-बड़े महत्व जानकारी प्राप्त की जा सकती है

इसी प्रकार गुप्त काल वैष्णव बौद्ध जैन एवं शिव धर्म की मूर्तियां किस काल में लोगों को धार्मिक शासन का इंगित करती है मूर्तियां चित्रों के विभिन्न भूषण भाव उसे योग का प्रमाण धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताओं पर आधारित जानकारी देती है मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की अतिरिक्त गुजरात में लोथल नामक स्थान उत्खनन कार्य में सेंधव जनों के व्यापारिक कार्यकलाप एवं अतिरिक्त चीज मिली चंद्रकुमारी की राजधानी पाटिल को तथा राज प्रसाद के संबंध में दिए गए विवरण कुमराहार के उत्खनन से प्राप्त अवशेष प्राप्त हुए थे


साहित्यिक स्रोत


साहित्य स्त्रोत ब्राह्मण साहित्य बौद्ध साहित्य जैन साहित्य अनेक धार्मिक ग्रंथ


ब्राह्मण साहित्य


ब्राह्मण साहित्य के अंदर वैदिक साहित्य आता है वैदिक साहित्य में ऋग्वेद प्राचीन है सामवेद यजुर्वेद अथर्ववेद ऋग्वेद के बाद आते हैं कालांतर में चारों वेदों के ऊपर थी कहां लिखी गई जिनका ब्राह्मण ग्रंथ के रूप में जाना जाता है शपथ ब्राह्मण अटरिया ब्राह्मण तेतरी ब्राह्मण प्रमुखता ब्राह्मण ग्रंथ और अनेक और उपनिषद मूल रूप से ब्राह्मण ग के अंग है किंतु कालांतर में यह स्वतंत्र रूप में प्रतिष्ठित हुए यह वैदिक साहित्य के अंतिम चरण का निर्माण करते हैं ऋग्वेद के अध्ययन से तत्कालीन समाज का चित्र उभरता है उसे साहित्यकार पूर्व वैदिक युग की संज्ञा प्रदान करते हैं



रामायण एवं महाभारत


रामायण महाभारत भारतीय महाकाव्य है ग की ऐतिहासिकता तथा तिथि क्रम के ऊपर विद्वानों में मतभेद हमेशा रहा है सामान रोशनी उत्तर वैदिक युग के जनजीवन पर प्रकाश डालने वाले ग के रूप में लिया जाता है


पुराण


पुराणों में भी इसका उल्लेख है


स्मृतियां


ब्राह्मण धर्म से संबंधित साहित्यिक परंपरा में स्मृति कहे जाने वाले ग को भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है स्मृतियों को धर्मशास्त्र भी कहा जाता है इस मृत्यु मनुष्य के संपूर्ण जीवन की विविध कार्यों के नियम एवं निषेधों का उल्लेख मिलता है



बौद्ध ग्रंथ 


बौद्ध ग सबसे पहले जाता ग स्थान आता है जातक कथाओं में बौद्ध के पूर्व जीवन की कथाएं दी गई है उनमें से कुछ कथाएं छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के पहले के जन्म जीवन प्रकार डालती है ही नहीं जाता कथाओं को आधार बनाकर रतीलाल मेहता ने अपनी पुस्तक फ्री बुद्धिस्ट इंडिया में बुद्ध से पूर्व के भारतीय समाज और जन जीवन का विवरण देने का प्रयास किया प्रारंभिक बौद्ध ग्रंथ पाली भाषा में लिखे हुए हैं बुद्ध के वचनों का संकलन तीन पृथक पृथक ग्रंथ के अंतर्गत हुआ जिन्हें सामूहिक रूप से त्रिपिटक की संज्ञा दी गई यह दिन त्रिपिटक है विनय बेटा शुद्ध पिटक अभी धाम में पिटक त्रिपिटक का रचना काल तथा इसे प्राप्त सूचनाओं का समय मुख्य रूप से छठी शताब्दी इसी पूर्ति तीसरी शताब्दी इसी उम्र के बीच का मानना चाहिए 


जैन ग्रंथ


प्राचीन भारत के इतिहास में लेखन का प्रयोग अत्यंत वायरल रहा किंतु धीरे-धीरे अब इतिहास लेखन में इनका अधिक उपयोग होने लगा है प्रारंभिक जैन ग्रंथ अंग नाम से जाने आते हैं उनकी संख्या 11 12 है जैन ग्रंथ अर्द्धगामी भाषा में लिखे हुए हैं यथापि ग्रंथ रूप में इनका संकलन काफी बात का है


प्राचीन भारतीय लेखन की पुस्तके

पुस्तक का नाम                           लेखक

बुद्धचरित्र                                  अश्वघोष

कामसूत्र।                                  वात्स्यायन

मेघदूत।                                    कालिदास 

नाट्यशास्त्र।                               भरतमुनि

सूर्य सिद्धांत।                             आर्यभट्ट

पंचतंत्र।                                    वराहमिहिर

रत्नावली।                                 हर्षवर्धन

पृथ्वीराजरासो।                          चंद्रवरदाई

मालतीमाधव                             भवभूति


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