भील जनजाति-Bhil tribe

 भील जनजाति-Bhil tribe




हेलो दोस्तों आज हम जाने 

भील जनजाति का इतिहास













भील शब्द का अर्थ 


भील  शब्द की उत्पत्ति बिल  से हुई है शब्द सामान्य जाति है भील शब्द का द्रवित भाषा में अर्थ होता है धनुष भाषा की दृष्टि देगा तो इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा में क्रिया के रूप मूल जिसका अर्थ भेद न बात करना या मारना से हुई है भील जनजाति के लोग तीरंदाजी में निपुण होते हैं शायद इसी कारण है यह नाम दिया गया भील जनजाति को भारत का बहादुर धनुष पुरुष कहा जाता है



भील जनजाति का इतिहास




भील मध्य भारत के जनजाति का नाम है भील जनजातिक लोग बिजली भाषा बोलते हैं भील जनजाति को भारत का बहादुर धनुष पुरुष कहा जाता है दिलों का एक बहुत लंबा इतिहास रहा है कोई इतिहासकरण भीलों के द्रविड़ से पहले का भारतीय निवासी मन तो कुछ ने बिलों को द्रविड़ ही माना है 


इस वंश का शासन पहाड़ी इलाकों में था भील जनजाति राजस्थान की सबसे प्राचीन जनजाति है बिल शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के विलोम शब्द से हुई जिसका अर्थ कमान तीर कमान में अत्यधिक निपुण होने कारण जनजाति को या नाम मिला इसका मुख्य निवास स्थान उदयपुर है इसके अतिरिक्त बांसवाड़ा डोंगपुर चित्तौड़गढ़ जिला में भी इसका निवास है



भील जनजाति की उपजातियां


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     मीणा भील

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     मवची भील

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     नायक ढोली

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     भील बड़ी

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     तड़वी भील

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     डूंगरी भील

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     ढोली भील

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    बसवा भील

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    रावल भील

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     वेधा भील 

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    पटेलिया भील

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     पावरा भील

 

भील जनजाति के प्रमुख गोत्र

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    डामोर 

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    कटरा 

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    निनामा

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    ननोत

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    पटेला

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    मकवाना

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    गमार

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    गरासिया

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    तावड़ 

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    भूरिया

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    सोलंकी


भील जनजाति के लोगों की बस्तियां


भील लोगों के अधिकांश जनसंख्या क्षेत्र  गांव में निवास करती है भीलो के प्रत्येक घर एक दूसरे दूर होते हैं इन घरों के चारों ओर उनके खेत होते हैं इसलिए ताकि यह लोग अपनी फसलों पर निगरानी रख सके भी लोग अपनी झोपड़ी खेती की भूमि के छोटे टुकड़े के मध्य टीले पर बनाई जाती है उनकी झोपड़ी में रहने के कमरे के अलावा पशुओं को रखने और अन्य भंडार के लिए कुछ कमरे रख आते हैं वे लोग अपनी झोपड़ी का निर्माण स्वयं करते हैं झोपड़ी दीवारों पर या तो मिट्टी और पत्थर था वहां से बनाई जाती है छत का निर्माण मिट्टी की घर अप्रैल या सरकंडा और पत्तों से क्या आता है झोपड़ी के सामने की दीवार चुने और लाल गेरू से रंगा पुताई की आती है वह चित्रकार बनाई जाती है हाथी घोड़े तेंदुआ चिता अभी के चित्र बनाए जाते हैं और जो संपन्न परिवार हो गया वर्तमान में पक्के मकान में रहने लगे


औजार और हथियार 

धनुष बाण


भी लोगों का सबसे प्रिय शास्त्र धनुष बाण होता है धनुष को बस की मोती का पर्ची से बन जाता है और उसकी डोरी भी बस की छाल से बनाई जाती है इसके अलावा भी बहुत से हतियार उनके पास होते है



भील जाति के प्रमुख देवता


भूल जाती यहां पर पहाड़ हवा पानी आता फसल के अलग-अलग देवता माने जाते हैं मिल जाती में जानवरों में विशेष रूप से घोड़े को श्रद्धा करते हैं तथा सर्प की पूजा करते हैं


भील जनजाति अपनी जीविका चलाने के लिए 


भील जाति के लोगों की जीविका मुख्य साधन खेती होता है 2011 की जनगणना के अनुसार भूल 53.8 प्रतिशत काश्तकार का काम करते हैं भील जाति के लोग बकरी और गए जैसे जानवर पलते हैं भील जाति के लोग मुर्गी का पालन करते हैं भील जनजाति के लोग का मुख्य धंधा लकड़ी काटकर बेच हैं का होता है लोग मुर्गी पालन मछली पालन मछली पकड़ना पेड़ों से फल थोड़ा लकड़ी कथन करना फैसले होगा ना अधिकारी करते हैं


भील जनजाति का भोजन


भीलों का मुख्य भोजन मक्का है किंतु कभी-कभी काल के समय छोटे-छोटे अन्य जैसे कोटरा कुड़ी और अंबानी का भी प्रयोग किया जाता है उत्सव के समय चावल बनाया जाता है चार्ज और आटे को उबालकर रबड़ी बनाई जाती है भील मांसाहारी होते हैं खरगोश हिरण तीतर आदि जीवों को मारकर उनका मांस से कर खा जाते हैं वर्षा और मछली पकड़ कर भी कहते हैं गुड का चाय पीते हैं ताड़ी पीती हैं


भील जनजाति का पहनावा


भील जनजाति पहनावे में मुख्यतः 

धोती बंदी और पगड़ी होती है जो पुरुष पहनते हैं 


भील जनजाति की स्त्रियां चटक मटक तेज कलर वाले कपड़े पहनती है 


भील जनजाति में स्त्रियां ओर पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते हैं

 

भील जनजाति में स्त्रियां घागरा ओर एक सदी पहनती है प्रथा के अनुसार अविवाहित लड़कियों को साड़ी पहनने की आज्ञा नही होती है


अविवाहित लडकिया पोशाक में घागरा पहनती है  


 भील जनजातीय में स्त्रियों पर तक आभूषण पहनती हैं जो 3 से 4 मीटर में बनकर तैयार हो जाता है


लडकिया अपने सिर को जिस कपड़े से दहकती है उसे ओढ़नी कहा जाता है


भील जातियों में चित्र बनाना गुदवाना  सारी चीज प्रचलित है



भील जनजातियों का पर्व


भील जनजातियों के लोग होली के समय किया जाने वाला भगोरिया नृत्य बहुत ही प्रदर्शनियां होता है

भील जनजातियों द्वारा भव्य नृत्य में विवाह में संबंध तय किए जाते हैं 


होली के समय विवाह का एक दिलचस्प प्रकार गोल गधेड़ा लोक नृत्य के रूप में आयोजित किया जाता है

और उसे त्यौहार में सब नाच गाने के साथ नृत्य करते हैं और त्योहार का भरपूर आनंद लेते हैं


बिलों का प्रणय वर्ग भगोरिया माना जाता है बिलों का महत्वपूर्ण त्योहार झाबुआ में आयोजित किया जाता है


भील जनजाति के लोगों का रंग कैसा होता है


भूल जनजातिक लोग कह रहे थे भूरे रंग के होते हैं बेल मध्य कटे के होते हैं भील जनजाति के लोग हस्त पोस्ट थोड़ा सा गठित शरीर के होते हैं इस जनजाति के लोग बहुत ईमानदार एवं सच्चे होते हैं यह जनजाति के लोग अपना अपमान यह तथा शब्द सहन नहीं कर पाते



सामाजिक का रहन-सहन 



भीलवाड़ा गांव एक सामाजिक गायक रूप में होता है भूल जाती में गांव के वरिष्ठ लोग जनसाधारण की समस्याओं को दान करते हैं

भूल जाती भी भाषा इंडो आर्यन परिवार की बोली है फूलों का मकान चौकोर होते हैं

उनके मकान नीचे मिट्टी का पत्थर दीवार होती है ऊपर से मिट्टी गोबर का लेप होता है

इनके मकान की छत बस से डलवा बनी होती है

बिलों के मकान में केवल एक छोटा दरवाजा होता है बिलों के मकान खिड़की नहीं होती भील जाती निवास स्थान को फलिया कहते हैं भील जनजाति अपने मकान को कू कहते हैं


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