भरथरी कौन थे/ Bharthari kon the

 

भरथरी कौन थे/ Bharthari kon the


भर्तहरि की गुफाए मध्य प्रदेश/Bharthari ki Gufaye Madhya Pradesh



राजा भर्तहरि की गुफा उज्जैन में स्थित है यह गुफा मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है

राजा भर्तहरि एक परम प्रतापी तपस्वी थे उन्होंने गुफा में रहकर कठोर तपसया की उज्जैन में इस स्थान को राजा भर्तहरि की तप स्थली कहा जाता है राजा भर्तहरि की गुफा उज्जैन में एक धार्मिक एवं एक दार्शनिक स्थल है 11 वी शताब्दी में परमार वंश के शासकों एवं राजाओ द्वारा इन गुफा के निर्माण किया गया था यह गुफाएं उज्जैन नगर की प्रसिद्ध  सांस्कृतिक विरासत बन गयी है


  भर्तहरि की गुफा 







https://www.specialeducationpedia.in/




सदियो से उज्जैन में कई शानदार मंदिर रचनाये। गुफाएं आदि देखने के लिए मौजूद है, उज्जैन शेर में ओर भी स्मारक देखने लायक है , गढ़कालिका मंदिर उज्जैन के प्रमुख पर्यटन स्थलों में प्रमुख स्थल है , इन गुफाओं का इतिहास काफी पुराना है, जब उज्जैन में राजा विक्रमदित्य का शाशन था , भर्तहरि एक विद्वान व्यक्ति थे , 

यह गुफा पत्थर और शिला के खम्बो पर बनी हुई है, इस गुफा में देवी- देवताओं की मूर्तियां स्थापित है, इस गुफा में कई कमरे स्थित है वह एक मंदिर भी बना हुआ है यह मंदिर नाथ समुदाय के भक्तों या साधुओ का पवित्र साधना स्थल माना जाता है,  




यहा पर 2 गुफाएँ है



1- भर्तहरि की गुफा 

2- गोपीचंद की गुफा




1- भर्तहरि की गुफा -



https://www.specialeducationpedia.in/




यह गुफा जमीन पर स्थित है इस गुफा में जाने के लिए हमे बहुत सकरे रास्ते से जाना होता है अंदर जाने के लिए नीचे की ओर सीडिया बनाई गई है

गुफा में एक बड़ा हाल है उसमें भगवान का शिवलिंग भी है।

इस भर्तहरि की गुफा में हमे पहुचने के लिए । गढ़कालिका मंदिर से 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महाकाल मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर पर यह गुफा स्थित है।






2 गोपीचंद की गुफा






https://www.specialeducationpedia.in/



यह गुफा एक छोटी गुफा है 



भर्तहरि की रचनाएं -


 श्रृंगारशतक 

 वैराग्यशतक

 नीतिशतक 



इन रचनाओं को भारतीय सहित्य का रत्न माना जाता है, गोपीचंद की गुफा भर्तहरि की गुफा के दक्षिण में स्थित है। गोपीचंद महाराजा भर्तहरि जी का भतीजा था। इस गुफा की छत बड़े बड़े पत्थरो के बल पर टिकी हुई है।।




गोपीचंद की गुफा के अंदर स्थित शिवलिंग




https://www.specialeducationpedia.in/





इस गुफा के अंदर एक शिवलिंग है इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर के नाम से जाना जाता है।




भर्तहरि का जीवन परिचय 


भर्तहरि का जीवन परिचय (चक्रवर्ती सम्राट भर्तहरि)


योगिराज भर्तहरि के पिता उज्जैनी नरेशन 

महाराज गंधर्वसेन थे, महाराजा गंधर्वसेन की चार संतानें थी, 

1 भर्तहरि

2 विक्रमादित्य

3 सुभट्वीर्य 

4 मैनावती


मैनावती गोंड़ बंगाल के शाशक राजा मानिकचंद की रानी और ओर योगिराज गोपीचंद की माता थी, राजा भर्तहरि विक्रमादित्य के बड़े भाई थे , 

राजा भर्तहरि धैर्यवान, पराक्रमी, समर्थवान, ज्ञान नीति , विवेक, दाम दंड भेद से परिपूर्ण प्रिय चक्रवाती  राजा थे, 108 राजा और अधिराजा उनके चरंदेश में नतमस्तक थे,तिरलोक सुंदरी रानी पिंगला उनकी पत्नी थी, 




महाराजा भर्तहरि ओर गोरखनाथ की भेंट




महाराजा भर्तहरि ओर गुरु गोरखनाथ की भेंट 2500 वर्ष पहले राजा भर्तहरि शिखार खेलने तोरणमल की पर्वत शंखलाओ में गए, वहा पर उन्होंने भागते हुऐ हिरण का शिकार किया, योग सयोगवंश श्री गुरु गोरखनाथ उसी वैन में तपस्या में लीन थे, वह घायल हिरण गुरु गोरखनाथ जी के समीप ही गिर गया, ओर वही उसके प्राण पखेरू उड़ गये, राजा भर्तहरि उसका पीछा करते हुए वही पहुच गये, सामने देखा तो एक महान तेजस्वी योगी समाधि में लीन बैठे हुए हैं उनके चरणों के समीप हिरण मत पड़ा हुआ था राजा भरथरी इन्होंने प्रणाम किया और अपना शिकार मांगने लगे गोरखनाथ जी उनकी ओर देखा और बोल राजा और योगी में कौन बड़ा इस पर बेहतरीन मन हो गए तब गुरु गोरखनाथ जी ने स्पष्ट किया राजा प्राणी को केवल मार सकता है किंतु योगी मर भी सकता और जीवित भी कर सकता है राजा अपराध बस से ग्रसित होकर संकोच से बोले हे नाथ यदि आप इस हिरण को जीवित करते हैं तो मैं अपना संपूर्ण राजपाट छोड़कर आपका शिष्या हो जाऊंगा राजा भरथरी की प्रार्थना पर गुरु गोरखनाथ जी ने अपनी विभूति को मृत्युदंड मंत्र अभिमंत्रित कर हिरण पर चिराग दी इसका आशीर्वाद और योग शक्ति के प्रभाव से हिरण जीवित हो उठा राजा भरतरी अशकित हो गया हुए बहुत प्रभावित हो गए और कर्बलाद प्रार्थना करने लगे हैं महाशिद है नाथ में आपकी शरण में हूं आप मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें श्री गोरखनाथ जी जानते थे कि राजा भरथरी महारानी पिंगला से अति प्रेम के कारण ईश्वर भक्ति नहीं कर सकते हैं गुरु गोरखनाथ जी कहा राजन अभी उचित समय नहीं आया भविष्य में देखेंगे योग मार्गदर्शन कठिन है जंगल में धुंआ लाकर भगवती रामानी पड़ती है 56 प्रकार के भगवानों का त्याग कर रुपीस होकर रोटी का टुकड़ा आया जो मिले भिक्षा में प्राप्त खाना पड़ता है इसके लिए संभव है राजन आप प्रस्थान करें मैं अपने राज्य कर्मों पर ध्यान दें राजा भरथरी और श्री गोरखनाथ जी का अत्यंत श्रद्धा भाव से प्रणाम कर वापस अपने महल लौटाए


Post a Comment

0 Comments