समास







समास




उपसर्ग और प्रत्ययो के योग से शब्द रचना होती है शब्द रचना की प्रक्रिया दो या दो से अधिक शब्दों योग से भी होती है किन्तु इन शब्दों में परस्पर कुछ सम्बन्ध होना चाहिए.

 

परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को  समास कहते है.

समास्युक्त पद को समस्तपद कहते है विग्रह करने (तोड़ने) पर समस्त पद के दो पद बन जाते है. पूर्वपद और उत्तरपद

 

जेसे –  सत्य असत्य में सत्य पूर्वपद और असत्य उतर्पद है.

  इसी प्रकार

समस्तपद      पूर्वपद    उतर्पद    समस्तपद    पूर्वपद    उतर्पद

युद्धभूमि       युद्ध भूमि     जन्म मरण   जन्म    मरण चतुरानन चतुर          आनंन

 

समास के भेद :-

1-     तत्पुरुष समस

2-     बहुब्रिही समस

3-     द्वन्द समस

4- अव्यिभाव समास

 

 

तत्पुरुष समस – जहा दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहले पद के साथ लगी विभक्ति का लोप होता है. वह तत्पुरुष समास होता है.

जेसे –

समस्त पद                     विग्रह

  • यश्प्राप्त                 यश को प्राप्त

  • शोकाकुल               शोक से आकुल

  • तुलसीकृत               तुलसी से कृत

  • हस्त लिखित             हस्त से लिखित

  • अनुभवजन्य              अनुभव से जन्य

 

 

 

तत्पुरुष समास के भेद :-

 

1- अलुक तत्पुरुष

2- न.......तत्पुरुष

3- माध्यम पद लोपी तत्पुरुष

4- कर्मधारय समास

5- दिगु समास

 

 

1- अलुक तत्पुरुष –

ऊपर हमने देखा की दो शब्दों के बीच आई विभक्ति का लोप हो जाता है.पर जब इस विभक्ति का लोप नही होता तो अलुक तत्पुरुष (लोप नही हुआ ) समास होता है.

जेसे –

 

समस्त पद                   विग्रह

·        मनसिज          मनसि (मन में ) ज (उत्पन्न )

·        सरसिज            सरसि (तलब में) ज (उत्पन्न )

·        युधिस्ठिर          युधि (युद्ध में ) स्थिर

·        खेचर                 खे (आकाश में ) चर  

·        वाचस्पति           वाचस/ वाच: (वाच का ) पति

 

2-   न...........तत्पुरुष –

 

जिस समस्त पद में पहला पद निषेधात्मक हो उसे न..........तत्पुरुष कहते है.

जेसे –

 

समस्त पद             विग्रह  

·        अन्याय               न न्याय

·        अधर्म                 न धर्म

·        अकर्मण्य               न कर्मण्य

·        अस्थिर              न स्थिर  

·        नास्तिक              न आस्तिक

 

3- माध्यम पद लोपी तत्पुरुष –

 

जिस समस्त पद के दोनों पदों के बीच में कोई पद लुप्त हो . उसे माध्यम पद लोपी समस कहते है.

 

जेसे –

समस्त पद          विग्रह

·        धर्तान्न               धरत से युक्त अन्न

·        पर्णकुटी               पर्ण से बनी कुटी

·        दही बड़ा              दही में डूबा बड़ा

·        बैलगाड़ी             बैले से खिची जाने वाली गाड़ी

·        गोबर गणेश               गोबर से बना गणेश

 

- कर्मधारय समास –

 

कर्मधारय समास तत्पुरुष का भेद है. इस समास का पूर्ण पद विशेषण और उत्तर पद विशेष्य या एकपद उपनाम तथा दूसरा पद उपमेय होता है

 

जेसे –

विशेषण विशेष्य              समस्त पद विग्रह

नीलगाय                    नीली हे जो गाय

          नीलाम्बर                    नीला हे जो अम्बर

  श्वेताम्बर                  शवेत हे जो अम्बर

 

विशेषण समस्तपद                 विग्रह

·        कालीमिर्च                         काली हे जो मिर्च

·        महाविद्यालय                       महा हे जो विद्यालय

·        अधपका                           आधा हे जो पका

·        दुरात्मा                            दूर बुरी हे जो आत्मा

 

उपमान उपमेय ;-

 

समस्त पद                  विग्रह

·        चन्द्रमुख              चन्द्र के सामान मुख

·        कमल चरण            कमल के सामान चरण

·        देहलता                  देहरूपी लता

·        कनकलता               कनक के सामान लता

·        नरसिंह                    नर रूपी सिंह 

 

दिगु समास -

 

यह कर्मधारय समास का भेद है. समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है. और किसी समूह का बोध करता है.

 जेसे –

समस्त पद                   विग्रह

·        पंचवटी                पंचवटो का समाहार या समूह

·        नवरत्न               नवरत्नों का समाहार

·        त्रिफला               तीन फलो का समाहार  

·        त्रिभुवन               तीन भुवनो का समाहार

 

 

 

2- बहुब्रिही समास –

 

जिस समस्त पद में कोई भी पद प्रधान नही होता और सारा समस्त पद किसी अन्य के विशेष के रूप में प्रयुक्त होता है उस बहुब्रिही समास कहते है.

जेसे –

समस्त पद                        विग्रह

·        नीलकंठ               नीले कंठ वाला ( शिव )

·        दसानन               दस अनंन वाला (रावण)

·        पीताम्बर                पीत अम्बर वाला

·        घनश्याम               जो घन के सामान श्याम वह (श्रीकृष्ण )

 

 

Ø कर्म् धराय और दिगु में अंतर –

 

कर्म धारय समास में समस्त पद का एक पद गुणवाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है परन्तु दिगु में पहला पद संख्यावाचक विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है.

जेसे - 

 

·        परमानन्द                    परम आनंद ( कर्मधारय )

·        नीलाम्बर                        नीला अम्बर  (‘’)

·        चातुवर्ण                         चार वर्ण       (दिगु )

·        त्रिफला                       तीन फलो का समूह  (“)

 

Ø दिगु और बहुब्रिही समास में अंतर -

 

  दिगु और बहुब्रिही समास इसे अनके उदहारण भी मिल जाते है. जिन्हें दिगु और बहुब्रिही दोनों समासो का अंतर भी समझ लेना चाहिए . दिगु समाज में समस्त पद का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है.

और दूसरा पद उसका विशेष्य परन्तु बहुब्रिही समास में सारा समस्तपद ही विशेषण का कार्य करता है.

जेसे –

·        त्रिफला            तीन फलो का समूह (दिगु )

·        पंचरत्न             पाच रत्न (‘’)

·         

यदि इन्ही शब्दों का विग्रह निम्नलिखित ढंग से किया जाय तो बहुब्रिही समास होगा.

जेसे –

 

·        त्रिफला                          तीन फलो वाला (बहुब्रिही)

·        पंचरत्न                              पाच रत्नों वाला  (‘)

 

Ø कर्मधारय और बहुब्रिही में अंतर –

 

अपने उपर कर्मधारय और बहुब्रिही के उदाहर्नो को पड़ा है इसमें कुछ उदहारण इसे है जो कर्मधारय समास के अंतर्गत भी दिए है.

और बहुबिर्ही समास के अंतर्गत भी क्या आपने उनके विग्रह रूप पर धयान दिया यदि आप उन दोनों को ध्यान से देखेंगे तो स्पस्ट हो जायेगा की कर्मधारय में एक एक पद विशेषण या उपनाम था और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय

 

जेसे – पीताम्बर में पीत ( विशेषण ) और अम्बर (विशेष्य )

 

घनश्याम घन (उपमान ) के सामान श्याम ( उपमेय) परन्तु बहुब्रिही समास में सारा समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है.

पीताम्बर का विग्रह  पीत+ अम्बर

घनश्याम का विग्रह  घन+ श्याम

अत: सापेक्ष में कहा है की कर्म धरे समस में समस्त पद का पूर्ण पद विशेषण या उपमान और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है परन्तु बहुबिर्ही समास में सारा समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है.

 

 

कुछ अन्य उदहारण-

·        महात्मा                   महान जो आत्मा (कर्मधारय )

महान है आत्मा  (बहुविर्ही )

·        कमलनयन                   कमल जेसे नयन (कर्मधारय )

कमल जेसे नैनों वाला (बहुविर्ही )

·        कुमति                     कुत्सित जो मति (कर्मधारय)

   कुत्सित मति है जिसकी ( बहुविरही )

 

3- द्वंद समस -

 

जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हो और विग्रह करने पर और एवं तथा अदि लगता हो, उसे द्वंद समास कहते है.

जेसे –

 

समस्तपद                           विग्रह

·        माता – पिता                    माता और पिता

·        राजा – रंक                         राजा और रंक

·        पाप – पुण्य                     पाप और पुण्य

·        भीम – अर्जुन                     भीम और अर्जुन

 

4-अव्यविभाव समास

 

जब समस्त पद का पहला पद अवयव हो तथा उसके योग से सारा समस्त पद ही अवयव बन जाये उसे द्वंद समास कहते है

 

जेसे - 

 

 

समस्तपद                    विग्रह

·        अजन्म                        जन्म से लेकर

·        आजीवन                      जीवन परियन्त/ तक

·        आमरण                      मृत्यु परियन्त/तक

·        एकाएक                     अचानक, अकस्मात

 

 

     

 

 

                                       

 

 

 

 


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