पृथ्वी का इतिहास


हेल्लो दोस्तों आपके सामने एक बार फिर specialeducationpedia.in पर महत्वपूर्ण पोस्ट लेकर आये है इस पोस्ट में आपको सोर् मंडल से सम्बंधित एवं प्रथ्वी से जुडी सभी जानकारी आपको इस पोस्ट में मिलेगी……..




पृथ्वी का इतिहास








सौरमंडल में पृथ्वी


आसमान में पहले एक दो चमकते बिंदु दिखाते रहे हैं  

 

लेकिन बाद में इनकी संख्या बढ़ती जाती है आप इनकी गणना नहीं कर सकते

 

संपूर्ण आकाश छोटी-छोटी चमकदार वस्तु से  भरा है

 

जिसमें कुछ चमकीले होते हैं  ऐसा प्रतीक होता मानो आकाश में हीरे जड़े हो

 

 लेकिन अगर आप उनको ध्यान रखेंगे तो आप आएंगे कि इसमें से कुछ टिमटिमाते सबसे अलग है

 

इन चमकीली वास्तु के साथ आप लगभग प्रतिन चंद्रमा को देखते हैं

 

यह अलग-अलग आकार में अलग-अलग चीज दिखाई देता है

 

आप पूर्ण चंद्र को लगभग एक महीने में एक बार देख सकते हैं या पूर्ण चंद्रमा वाली रात या पूर्णिमा होती है 15 दिन के बाद आप इसे नहीं दे सकते हैं

 

 या नए चंद्रमा की रात्रि की अमावस्या होती है ऐसी रात में अगर आसमान साफ है तो आप आसमान में अच्छी तरह से कर सकते हैं

 

हम दिन के समय चंद्रमा नहीं देख सकते हैं

 

सूर्य चंद्रमा तथा सभी वस्तुएं जो रात के समय आसमान में चमकता है खगोलीय पिंड कहलाती है

 

कुछ खगोलीय पिंड बड़े आकार वाले तथा गर्म होते हैं यह गैसों से बने होते हैं

 

उनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है जिसे वह बहुत बड़ी मात्रा में उत्सर्जित करते हैं इन खगोलिक पिंडों को तारा कहते हैं

 

सूर्य भी एक तारा है

 

रात के समय चमकते हुए तारे सूर्य के समान ही है लेकिन हमसे बहुत अधिक दूर होने कारण हम लोग  प्रकाश को महसूस  नही कर करते हैं तथा वह अत्यंत छोटे दिखाई पड़ते हैं

 

 

 अपने हमेशा देखा होगा कि ध्यान दिया

 कोई वस्तु दूर से देखने पर वस्तु छोटी दिखाई देती है

 

अत्यधिक ऊंचाई पर पूरा हवाई जहाज कितना छोटा प्रतीत होता है

 

रात्रि के समय आसमान की ओर देखते समय आप तारों की विभिन्न समूह द्वारा बनाई गई विविध आकृति को देख सकते हैं यह नक्षत्र मंडल कहलाते हैं

 

बहुत बहुत आसानी से पहचान में आने वाला नक्षत्र मंगल है सप्त ऋषि सब तो साथ ऋषि या सात तारों का समूह है जो की नक्षत्र मंडल है

सप्त ऋषि सहायता से जान सकते है

 

 

कुछ खगोलीय पिंडों में अपना प्रकाश एवं उसमें ऊष्मा नहीं होती है वह तारों के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं

 

ग्रह जिसे अंग्रेजी में प्लानेट कहते है ग्रीक भाषा के प्लेनेटाइड शब्द से बना है

 

प्राचीन समय में लोग रात्रि में दिशा का निर्धारण तारों की सहायता से करते थे

 

उत्तरी तारा उत्तर दिशा को बताता है इसे ध्रुव तारा भी कहा जाता है यह आसमान हमेशा एक ही स्थान पर रहता है हम सप्त ऋषि सहायता ध्रुव तारे की स्थिति को जा सकते हैं

 

कुछ खगोलीय पिंड में अपना प्रकाश एवं उसका नहीं होती वह तारों के प्रकार से प्रकाश होते हैं ऐसे पिंड ग्रह कहलाते हैं गृह जिसे अंग्रेजी में प्लेटलेट कहते हैं ग्रीक भाषा का प्लेट नाइट शब्द बना है जिसका अर्थ है परिभरमक अर्थात चारों और घूमने वाले पृथ्वी जिस पर हम रहते हैं

 

एक ग्रह है या अपना संपूर्ण प्रकाश एवं उसका सूर्य से प्राप्त करती है जो पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है पृथ्वी का बहुत अधिक दूरी से जो चंद्रमा से देखने पर यह चंद्रमा की तरह चमकते प्रतीत होती है

 

आसमान में दिखने वाला चंद्रमा एक उपग्रह है यह हमारी पृथ्वी का सहचर है तथा इसके चारों ओर चक्कर लगाता है हमारी पृथ्वी के साथ अन्य ग्रहण जो सूर्य के प्रकाश एवं ऊष्मा प्राप्त करते हैं इसमें कुछ के पास अपने चंद्रमा भी है

 

 

सौरमंडल

 

सूर्य 8 ग्रह उपग्रह तथा कुछ अन्य खगोलीय पिंड जैसे शुद्र ग्रह एवं  मिलकर सौरमंडल का निर्माण करते हैं उसे हम सौर परिवार का नाम देते हैं इसका मुखिया  सूर्य है

 

 

 

सूर्य

 

सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित है यह बहुत बड़ा है

एवं अत्यधिक गर्म गैसों से बना है जिसका खिंचाव बाल इससे सौरमंडल को बांधे रहता है

 

 सूर्य सौरमंडल के लिए प्रकाश एवं ऊष्मा का एकमात्र स्रोत है लेकिन हम इसकी अत्यधिक तेज उष्मा को महसूस नहीं करते हैं क्योंकि सबसे नजदीक का तारा होने के बावजूद यह हमसे बहुत दूर है सूर्य पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है

 

 

ग्रह

 

 

हमारे सौरमंडल में आठ ग्रह है

 

सूर्य से दूर

 

बुध शुक्र पृथ्वी मंगल ब्रहस्पति शनि यूरेनस तथा नेपच्यून

 

 

सौरमंडल सभी हार्ड ग्रास सूर्य का चक्कर एक निश्चित दूरी से लगते हैं यह रास्ते दीघा व कार्य में फैले हुए हैं यह कक्षा कहलाते हैं।

 

 

बुध सूर्य के सबसे नजदीक है अपनी कक्षा में सूर्य के चारो ओर एक चक्कर लगाने में इसे केवल 88 दिन लगते है शुक्र को पृथ्वी का जुड़वा ग्रह माना जाता है

 

क्योंकि इसका आकार एवं आकृति लगभग पृथ्वी के समान ही है

 

 

प्लूटो भी एक ग्रह माना जाता था परंतु अंतरराष्ट्रीय खगोलीय ने आप ई बैठक अगस्त 2006 में यह निर्णय लिया कि कुछ समय पहले खोजे गये खगोलीय पिंड तथा प्लूटो बोन ग्रह कहे जा सकते है

 

 

 

 

पृथ्वी

 

सूर्य से दूरी के हिसाब से पृथ्वी तीसरा ग्रह आकार में या पांचवा सबसे बड़ा ग्रह या ध्रुव के पास थोड़ी छपती है यही कारण है कि इसके आकार को वह भाग कहा जाता है वह भाग का अर्थ है पृथ्वी के समान आकार

 

 

जीवन जीना केवल पृथ्वी पर ही संभव है

हेलो पृथ्वी ना तो घर में नहीं ठंडी इसमें समस्या प्रकार कैसे उपस्थिति से इसमें ऑक्सीजन मौजूद है इन्हीं कर्म से पृथ्वी सौरमंडल का सबसे अद्भुत ग्रह है

 

अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई पड़ती है क्योंकि इसकी दो तिहाई सात पानी से ढकी हुई है इसलिए इसे नीला ग्रह कहा जाता है

 

 

चंद्रमा

 

हमारी पृथ्वी के पास केवल एक उपग्रह है चंद्रमा इसका व्यास पृथ्वी के विकास का केवल एक चौथाई है यह इतना बड़ा इसलिए प्रतीक होता क्योंकि यह हमारे आगरा से अन्य गांगुली विंडो अधिक है या हमसे लगभग 300400 किलोमीटर दूर है अब आप पृथ्वी से सूर्य एवं चंद्रमा की दूरी की तुलना कर सकते हैं

 

 

चंद्रमा पृथ्वी का एक चक्कर लगाओ 27 दोनों पूरा करता है लगभग कितने समय में या अपने आंखों पर एक चक्कर भी पूरा करता है इसके परिणाम स्वरुप पृथ्वी से हमें चंद्रमा का केवल एक ही भाग दिखाई पड़ता है चंद्रमा की प्रकृति जीवन के लिए अनुकूल नहीं है इसकी सतह पर पर्वत मैदान एवं जो जन्म

 

 

शुक्र ग्रह

 

तारो ग्रहों एवं उपग्रहों के अतिरिक्त बहुत सारे छोटे पिंड भी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते है इन पिंडो को क्षुद्र ग्रह कहते है ये मंगल एवं वृहस्पति की कक्षाओं के बीच पाए जाते है वेज्ञानिको के अनुसार क्षुद्र ग्रह ग्रह के ही भाग है

जो बहुत वर्ष पहले विस्फोट के बाद ग्रहों से टूटकर अलग हो गए

 

  उल्कापिंड

 

सूर्य के चारों चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्का पिंड कहते हैं कभी-कभी उल्का पिंड पृथ्वी से इतनी अधिक आ जाते हैं कि उनकी प्रवृत्ति पृथ्वी पर गिरने की होती है इस प्रक्रिया के दौरान वायु के साथ घर्षण होने कारण यह गर्म होकर जल जाते हैं परिणाम फल स्वरुप चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है कभी-कभी कोई उसका पूरी तरह जले बिना पृथ्वी पर गिरती है जिससे धड़कन पर गड्ढे बन जाते हैं क्या अपने तारों वाले खुले आकाश में एक और दूसरी ओर तक फैली चौड़ी सफेद पट्टी की तरह एक चमकदार रास्ते को देखा है या लाखों तारों का समूह है या पट्टी आकाशगंगा है हमारा सौरमंडल इस सागर गंगा का एक भाग है प्राचीन भारत में से कल्पना आकाश में प्रकाश की एक बहती नदी से की गई इस प्रकार इसका नाम आकाशगंगा पड़ा आकाशगंगा करोड़ तारों बादलों तथा करो गैसों के एक प्रणाली है इस प्रकार के लाखों आकाशगंगा मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करती है ब्रह्मांड की विशालता की कल्पना करना अत्यधिक कठिन है वैज्ञानिक अभी भी इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित करने में जुड़े हैं इसके आकार के संबंध में हमें कोई जानकारी नहीं है लेकिन फिर भी हम जानते हैं कि हम सभी इसी ब्रह्मांड का हिस्सा है



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